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वहै मुसक्यानि / घनानंद

कवित्त

वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै

लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।

वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,

वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है।

वहै चतुराई सों चिताई चाहिबे की छबि,

वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।

आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की,

सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।। 4 ।।