भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वहै मुसक्यानि / घनानंद
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:43, 7 जुलाई 2007 का अवतरण
- कवित्त
- कवित्त
वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै
- लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।
- लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।
वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,
- वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है।
- वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है।
वहै चतुराई सों चिताई चाहिबे की छबि,
- वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।
- वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।
आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की,
- सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।। 4 ।।
- सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।। 4 ।।