भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यदि यह सृष्टि ..... / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 21 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)
यदि यह सृष्टि
तुम्हारी ही कल्पना है
तो अब मैं नहीं मरूँगा
जब तक तुम नहीं मरते।
और तुम
जो बार-बार मुझ में
जनमते हो कि मर सको
अमर होने को विवश हो।
इसलिए ऊबो नहीं
प्यार करो
और मुझे सँवारो
जैसे मैं अपने प्यार को
सँवारता हूँ
जिस में मैं हर बार
मरता हूँ कि जी सकूँ
(1981)