जौहर / श्यामनारायण पाण्डेय / दरबार / पृष्ठ ३
शिर पर दुष्कर कार्य - भार है,
बोलो फिर क्या समाचार है।
इसकी बातें क्या सुनते हो,
यह पाजी बिल्कुल गँवार है॥
कहीं शिकारी मिला तुम्हें वह,
जिसके पीछे पड़े हुए थे।
उसे पकड़ने को तो उस दिन
बड़े गर्व से खड़े हुए थे॥
गुप्त दूत ने उसके आगे
साहस कर अपना मुँह खोला।
पुरस्कार की आशा से शिर
झुका झुकाकर झुक झुक बोला॥
सफल आपका दास आज है,
अतिशय हर्षित जन - समाज है।
फँसा आप पिंजड़े में आकर,
आसानी से रतन – बाज है॥
पैरों में हैं बँधीं बेड़ियाँ
हथकड़ियों से हाथ बँधे हैं।
शिविर – द्वार पर चर – बंधन में
आज पद्मिनी – नाथ बँधे हैं॥
अब तो रानी के मिलने में
रंच मात्र संदेह नहीं है।
आधी देह बची है उसकी,
बाकी आधी देह यहीं है॥
गुप्तदूत की बातें सुनकर
बोला, उठो गले लग जाओ।
कहता था, वह नहीं मिलेगी,
इस बुद्दू को भी समझाओ॥
यह लो, उँगली से निकालकर
फेंकी उसकी ओर अँगूठी।
दिए कनक – हीरक रेशम - पट,
टोपी दी नव परम अनूठी॥
आओ एक रतन लाए तो
रतन ढेर के ढेर उठाओ।
मणीमाला, नवलखा हार लो,
मोती – हीरों से भर जाओ॥
कहाँ पद्मिनी का प्यारा पति
कारागृह में उसे डाल दो।
एक पत्र राणा को लिखकर
तुरत सूचना यह निकाल दो—
तभी मुक्त होगा रावल, जब
आ जाएगी स्वयं पद्मिनी;
सिंहासन पर शोभित होगी,
खिलजी की वन राज - सद्मिनी॥
पथिक बोला, पोंछकर आँखें सजल,
आँसुओं के तरल पानी बह चलो।
और योगी से कहा, छू पद – कमल,
तुम रुको न कहीं कहानी कह चलो॥
जप पुजारी ने किया क्षण मौन हो,
चल पड़ी दरबार की आगे कथा।
स्वप्न राणा का कहा, आख्यान में
शत्रु की भी सूचना की थी व्यथा॥
विष्णु मंदिर, द्रुमग्राम, (आज़मगढ़)
दीपावली, संवत १९९७