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खेल / वत्सला पाण्डे
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आंख ठहर जाती है
मिट जाती है
देखने की चाहत
रूक जाती है
दुनिया
ठहर जाता है
समय
तब
दुनिया नहीं दिखती
रह जाती हैं
कठपुतलियां
नचाते हाथों में
रह गई हैं डोरियां
कब देख सकेंगे
सामने बैठकर
कठपुतली वाले का
तमाशा
बजा सकेंगे
खुश होकर
तालियां !!