भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
द्वारिका में जब कोयल बोली / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:41, 22 जुलाई 2011 का अवतरण
द्वारिका में जब कोयल बोली
याद आ गयी मनमोहन को राधा की छवि भोली
याद आ गईं प्यारी गायें
वृन्दावन के कुंज, लतायें
सोचा-- 'अबकी ब्रज में जायें
पुन: खेलने होली
'कितनी पुलक उठेगी मैया!
दौड़ मिलेंगे प्रिय 'बल भैया'
नाचेगी फिर 'ता-ता थैया'
ग्वाल-बाल की टोली'
तभी महाभारत ठनवाने
आ पहुँचे सब सखा सयाने
घेर लिया जग की चिंता ने
मन की गाँठ न खोली
द्वारिका में जब कोयल बोली
याद आ गयी मनमोहन को राधा की छवि भोली