भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

द्वारिका में जब कोयल बोली / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:43, 22 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


द्वारिका में जब कोयल बोली
याद आ गयी मनमोहन को राधा की छवि भोली
 
याद आ गईं प्यारी गायें
वृन्दावन के कुंज, लतायें
सोचा-- 'अबकी ब्रज में जायें
                       पुन: खेलने होली
 
'कितनी पुलक उठेगी मैया!
दौड़ मिलेंगे प्रिय 'बल भैया' 
नाचेगी फिर 'ता-ता थैया'
                     ग्वाल-बाल की टोली'
 
तभी महाभारत ठनवाने  
आ पहुँचे सब सखा सयाने
घेर लिया जग की चिंता ने
                   मन की गाँठ न खोली

द्वारिका में जब कोयल बोली
याद आ गयी मनमोहन को राधा की छवि भोली