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चीख़े मन का मोर / अवनीश सिंह चौहान

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कोई अपना
छोड़ साथ यों
चला गया किस ओर !

टप-टप-टप-टप
बरसे पानी
टूटा सपन सलोना
अंदर-अंदर
तिरता जाऊँ
भींगा कोना-कोना

चीख़ रहा है
पल-छिन छिन-पल
अपने मन का मोर !

किसने जाना
कहाँ तलक
उड़ पाएगी गौरैया
किसने जाना
कहाँ और कब
मुड़ जाएगी नैया !

जान गए भी
तो क्या होगा
समय बड़ा है चोर !

पास हमारे
आओगे कब
साथी साथ निभाने
हाथ पकड़कर
ले चलना तब
मुझको किसी ठिकाने

नयी डगर पर
भला चला है
कभी किसी का ज़ोर !