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खोखल अँधेरा / नंदकिशोर आचार्य

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खोखल अँधेरा
कोई एक चेहरा नहीं हैं
कोई चेहरा
उस में से कई चेहरे झाँकते हैं
एक-दर-एक।

पर आखिर जो बच रहता है
वह कोई चेहरा नहीं
सिर्फ अँधेरा है-
सभी चेहरों को अपने में समोता
खिलखिलाता हुआ
खोखर अँधेरा !

(1980)