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भूस्खलन / जितेन्द्र सोनी

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भूस्खलन में
धसक जाते हैं
तिनका-तिनका बने आशियाने
चौलाई के खेत
बिटिया की शादी के सपने
आने-जाने का रास्ता/ सड़क
पहाड़ों का सौन्दर्य
थम जाता है सब कुछ
गतिवान होते हैं केवल
या तो लुढ़कते पत्थर/ मिटटी
घाव से रिसते लहू की तरह
और या उजड़े परिवारों की
आँखों के आंसू
सच में
भूस्खलन हो सकता है
खबर केवल मैदानों में
पर पहाड़ी जिन्दगी में
यह है एक नासूर !