Last modified on 22 जुलाई 2011, at 20:02

अंधेरों के नाम / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:02, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> यह रात …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह रात का
बचा खुचा अंधेरा
है या मेरे मन
का घटाटोप
जो खिङकी की
चौखट पर
जम कर बैठा
अन्दर झांक
रहा है

खिङकी की
सलवटों के
बाहर बिछी
हैं न जाने
कितनी
अनकही
अनब्याही
अनाहूत
विवशतांए
और आकांशायें
जिन पर
बिखर रहे हैं
गहरी पावस से
शिथिलित
अपने जनों के
आंसू

आंसू
पत्धर
बन कर
चिपक गये हैं
दरीचों के
बीचो बीच
दीमक से
चाटते रहे हैं
घर की
हर दीवार
और चौखट
खिङकी खोल भी
क्या होगा