भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाकर सँजोने में / भारत यायावर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:56, 17 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत यायावर |संग्रह=हाल-बेहाल / भारत यायावर }} और वह हो ग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


और वह हो गया

बरसो सँजो रक्खा था

वह खो गया

तिल-तिल गला दिया ख़ुद को

न छक कर खाया-पिया-आराम किया

न जी भर कर अपनी की

सँजोए रहा उसे

रात-रात भर जाग कर रखवाली की

सुबह उठकर उसकी ही अर्चना की

खो जाने के डर से बाहर भी नहीं गया

अपने-आप में रहा

और वह हो गया

जिसके लिए ज़िन्दगी बरबाद की

वह खो गया


वह खो गया

अब निश्चिंत हूँ

जी भरकर खाता-सोता हूँ

दूर-दूर घूमता हूँ

दिमाग के ऊपर भूत जो सवार था

न जाने कहाँ चला गया

न उलझन, न भय

चैन से रहता हूँ

सोचता हूँ

सँजो कर रखने में

हम कितना तहस-नहस कर डालते हैं

ख़ुद को ही

खोना ही जीवन का वरदान है

और पाने

पाकर सँजोने में

पूरी दुनिया हलकान है


(रचनाकाल : 1995)