भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग-गंध के गाँव में / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
Abnish (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:58, 12 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> यह भँवरा मँ…)
यह भँवरा मँडराता-फिरता
रंग-गंध के गाँव में
फूलों का मन भरमाने को
मीठे असमय गीत सुनाता
उनको झूठी प्रीत दिखाकर
मादक मधु-मकरंद चुराता
अपना काम बनाता रहता
जज्बातों की छाँव में
कहने को कोमल कलियों पर
जाने कितना प्यार लुटाता
लोक-लाज सब छोड़-छाड़ के
मंजरियों को खूब रिझाता
सबको सैर कराता रहता
है कागज की नाव में
जो जितना आवारा रहता
बनकर के बंजारा रहता
गली-गली में उसकी चर्चा
आसमान का तारा रहता
नये समय की चालें चलता
बाँधे घुँघरू पाँव में