Last modified on 13 अगस्त 2011, at 15:11

’स’ के प्रति / कीर्ति चौधरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:11, 13 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कीर्ति चौधरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> चाय की मेज़ पर य…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाय की मेज़ पर यों ज़ोर-ज़ोर मत हँसो
भीड़ों में मस्ती बेपरवाही से मत धँसो
तुम्हें भी तो दर्द कहीं होगा ज़रा उसे कहो
मत सहो, यों मेरे मित्र, अरे, मत सहो ।