भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा बस्ता / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:31, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह=इक्यावन बालगीत / रमेश तैलंग }}…)
मेरा बस्ता
जैसे भानमती का एक पिटारा ।
एक नहीं, दो नहीं,
क़िताबें उसमें रहतीं चार ।
उनके साथ कापियाँ,
स्याही, पेन, सभी का भार ।
लटकाते-लटकाते कन्धा दुखने लगता सारा ।
लंच-बाक्स भी तो
उसके अन्दर ही रखना पड़ता ।
थक जाती हैं टाँगें
जब भी जल्दी चलना पड़ता ।
हाय ! पढ़ाई का हो पाता बस्ते बिना गुज़ारा ।