भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलता है इस तरह (3) / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:56, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक दिन उसने बताया
उसे किसी से कुछ हो गया
समाचार मिले
तब तक न जाने क्या-क्या हो गया
कहना चाहता था
कंधा उचकाकर-कोई नहीं
कह नहीं पाया
दकियानूसी जो नहीं था
कि भूचाल आ जाता
धरती फटी
न भूचाल आया
चाहथा था मैं भी बताऊं
कुछ होने की बात
कुछ भी ऐसा-वैसा याद नहीं आया।