भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़कियां (1) / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:23, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लड़कियां
जाने कब
बड़ी हो जाती है
बहुत बाद
जब
जताने लगती हैं
परिर्वतनों की अहमियत
पता चलता है
हो गई है बड़ी
बन गई है औरत
बंट जाते हैं खिलाड़ी बचपन के
दायरों में अपने-अपने
बदल जाते हैं खेल भी
मैदान भी।