भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लड़कियां (2) / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:24, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)
लड़कियां
अब सिहरती नहीं
बिफरती भी कम हैं
इन्जॉय करना जानती हैं
प्रतिकार नहीं करती
पहले तोलती हैं
लाइन मारने वालों को
औकात का पता लगाती हैं
नापती हैं उसकी हैसियत
दर्ज करती हैं
अपनी उपलब्धियों में।