भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जल है जहाँ / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:27, 14 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)
नदी उमड़ी नहीं आती है
सागर ही है
जो बहता रहता है नदी की ओर।
नहीं तौ कैसे बहे वह
किस तरह सागर रहे वह
बिन बहे ?
तभी तो नदी पर्वत से नहीं
सागर से बहती है
कि सागर रहे।
बल्कि क्या है नदी भी ?
वह पाट
जल जिस पर होकर गुजरता है
और जो बहता है जल
सागर है
बल्कि जल होना ही बहना है
और वह भी सदा बहता है
खुद ही की ओर।
इसलिए जल है जहाँ सागर भी वहीं है
तो तुम्हारी आँख क्यों सागर नहीं है ?
(1976)