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उसी से बने हैं पानी / नंदकिशोर आचार्य

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कई छोटी-बड़ी नदियाँ
मुझ में बह रही हैं
उफनती, गूँजती।

मैं सभी को झेलता
धरती-सा चुप हूँ
सभी गूँजों को अपने में समोये।

उसी से बने हैं पानी
जो धारे हैं मुझ को
और वह गूँज
जो आकाश-सी धारे हुए है
मुझे धारे हुए सारे पानियों को।

(1981)