भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हुई तो बारिश / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:45, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हाँ, हुई तो बारिश
पर इतनी ही बस
कि धरती याद करने लगी है फिर
उसाँसें भरती हुई
उन कामनाओं को
जिन्हें जाने कब से
अपने सीने में कहीं गहरे दबाये थी वह
-कितनी सोंधी है, प्यार,
कामना की स्मृति भी !

अधगीली रेत से
जो बनाती हो घरौंदा तुम
वह भी तभी तक तो है
जब तक तुम उस को
चूमने दो पाँव अपना-
और तुम भी भला बैठी रहोगी कब तक
सूखती रेत यों ही थपथपाते हुए ?

ठीक है, मैं बिखर भी जाऊँ-
लेकिन अपने सपने का तब
क्या करोगी तुम
जो कि मैं हूँ ?

(1987)