भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज़ादी / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 17 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रजनी अनुरागी |संग्रह= बिना किसी भूमिका के }} <Poem> क…)
कहीं कुछ टूट के बिखर रहा है
लड़ाई दूसरों से नहीं
अपनों से है
मेरे स्वत्व को छीना है अपनों ने ही
जीना है मुझे अपनी ही तरह
और इसके लिए चाहिए आज़ादी
अपनों से ही
और अपने से भी