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दिल्ली मैट्रो एक / रजनी अनुरागी
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एक
मैट्रो के सफ़र में आनन्द तो बहुत आता है
पर इस भीड़ से जी घबराता है
उसमें चढ़ते ही भर जाता है मेरे भीतर एक भय
साँस रुक-सी जाती है
दम घुट-सा जाता है
बचा-कुचा दम कश्मीरी गेट के
अंडर ग्राऊंड स्टेशन पर निकल जाता है
न जाने मच कब भगदड़ या फिर
क्या हो अगर खंबे ही दरक जाएं
क्योंकि भ्रष्टाचार हमारी राष्ट्रीय पहचान है
भ्रष्टतम देशों की सूची में हमारा देश महान है
और आजकल आतंकवादियों का भी
तो कोई ठिकाना नहीं है
वो कहीं भी और कभी भी हो सकते हैं प्रकट
वैसे भी हमारी सरकार चाहती है कि वे कुछ करें
जिससे जनता का ध्यान मंहगाई, भ्रष्टाचार से हटे
और विदेशी हाथ पर डटे