भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आत्मा के गर्भ में / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:09, 19 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चारों खूँट फैला
तप रहा मरूथल
आवें की तरह भीतर ही भीतर
क्या पकाता है ?

बोलो, तुम्हीं कुछ बोलो,
प्रजापति !

मेरी आत्मा के गर्भ में
क्या धर दिया पकने
मेरे ही पसार के चाक पर घड़ कर ?
ये आवाँ कभी तो खोलो,
प्रजापति !
मुझ में कभी तो हो लो !

(1982)