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मेरी आहूति लो / नंदकिशोर आचार्य

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यह निरन्तर लपटें उगलती
अग्निगर्भा रेत
अब क्या माँगती है-
पेड़-पौधे, जीव
सब कुछ निगल कर भी
अभी तक अतृप्त
बलि-वेदी !

मैं ही बचा हूँ केवल
लो, मैं प्रस्तुत हूँ
मेरी आहूति लो
मुझे भख लो, माँ !

शायद अपने ही बेटे की बलि पा
पसीजो तुम
मुझ में अँकुराओ
फिर से हरी हो आओ !

(1983)