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समझ से परे / नंदकिशोर आचार्य

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‘मेरी समझ में नहीं आती
तुम्हारी कविता कविताएँ’
- उस ने कहा।

‘मेरा प्रेम भी तुम कब समझती हो ?’

‘हाँ सो तो है’-
कहती खिलखिलायी हँसी वह
मेरी समझ में जो नहीं आयी
जैसे उदासी वह
मेरे प्रेम को सुनते हुए
उन आँखों में
जो झलक आयी थी।

(1993)