भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिवाली-दिवाली / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:36, 22 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह=उड़न खटोले आ / रमेश तैलंग }} {{KKCa…)
नमस्ते ! नमस्ते !
लो, फिर आ गई मैं,
पटाखे चलाती,
दिये जगमगाती,
दिवाली ! दिवाली !
पता है, पता है,
मुझे सब पता है ।
छुपा कर कहाँ किसने,
क्या-क्या रखा है ।
लड़ी छिटपिटी की,
अनारों के डिब्बे ।
बम, वाण,
वो फुलझड़ी फूल वाली ।
चलाना, चलाना जी,
सब कुछ चलाना ।
ये त्योहार ही है ख़ुशी का,
मनाना ।
मगर आग के पास,
ज़्यादा न जाना ।
ज़रा दूसरों को भी,
देखो, बचाना ।
कहीं ऐसा न हो कि,
छोटी-सी ग़लती से,
दुनिया उजाले की,
हो जाए काली ।