भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुर्सी / राजेन्द्र जोशी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:52, 28 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>कैसी भी हो कु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसी भी हो
कुर्सी बिकती हैं
कुर्सी का मोल लगता हैं
कुर्सी का समय तय नहीं
खरीददार की इच्छा पर
निर्भर करता हैं
बदल सकते हैं कुर्सी
बदलती भी हैं बोली
मोल भाव होता हैं
कैसी भी हो कुर्सी
कब होगी
बिना भाव की
यह कुर्सी !