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वार्ता:" यादें "

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जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

कभी खुश होता है उसके दुःख में कभी उसकी ख़ुशी में रोता है,

जलता है कभी क्रोध में लगता है जीवन पत्थर है,

खिलता है जब फूलो में लगता जीवन कितना सुन्दर है,

इन यादो के फूलो को पत्थर क्यु हर बार कुचलता है

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

कभी प्रेम से मिलता है , कभी नफरत से जलता है,

कभी हवा में उड़ता है , फिर क्यु धरती पर गिरता है,

बचपन की यादो में खोया लगता जीवन सपना है ,

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

यादो के दामन में हँसता , क्यु ममता के आँचल में रोता है,

डरता है क्यु उस दुःख से जिसको तो सब को सहना है,

आशा की किरणों में जीता लगता जीवन सागर है,

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

कभी देखता है दूर क्षितिज को ना पलके भी झुकाता है

राह देखता है उनकी जो ना लोटके आता है,

वक्त की यादो में खोया लगता जीवन धोखा है ,

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

ख्वाबो के साये में खोया लगता जीवन ज्योति है

आंसू की बूंदों में लगता जीवन ओंस का मोती है,

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

कभी खुश होता है उसके दुःख में कभी उसकी ख़ुशी में रोता है,

(रचना : महावीर जोशी पूलासर)