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नित घड़ूं आखर रा भाखर म्हैं / सांवर दइया
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नित घड़ूं आखर रा भाखर म्हैं
असल में हूं आखर रो चाकर म्हैं
जात है मिनख अर औ रगत लाल
बूंद हूं म्हैं खुद, खुद ई सागर म्हैं
म्हारा स्सै सुपना रेत में रळग्या
जीवूं बण ‘डाची’ रो ‘बाकर’ म्हैं
धरती पोढ्यो अर आभो ओढ्यो
घर थकां रैयो सदा ना-घर म्हैं
प्रीत रै पगोथियै स्सै सरखा
सुणू सांस री अजान-झालर म्हैं