भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सीमा / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 18 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> च...' के साथ नया पन्ना बनाया)
चावल की खेती करने के लिए
जगह ढूढ़ते-ढूँढ़ते
सीमा पर पहुँचा
इस पार औ’ उस पार
एक ही सूर्य-चाँद
बारिश
हवा
तूफ़ान
बाडा जानता है नफ़रत के बीज बोनेवाले को
शतरंज के मोहरे-सा
घोडा़, हाथी, रथ
सिपाही आगे बढ़ने लगे
राजा की मृत्यु नहीं होती
हारे या जीते
वह राजा ही है
बस,
सीमा पर अंतिम मौत
मेरी हो !