भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भीत / अरुण कमल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:55, 11 सितम्बर 2007 का अवतरण
मेरी एक तरफ़ बूढ़े हैं
पीठ टिकाए बहुत पहले से बैठे जगह लूट
कि उतरेगी पहले उन्हीं पर धूप
मेरी दूसरी तरफ़ बच्चे हैं
मेरी आड़ ले खेलते क्रिकेट
कि गेंद यहीं जाएगी रुक
मैं एक भीत
खिर रही है एक-एक ईंट
गारा बन चुका है धूर
पर गिरूँ तो किधर मैं किस तरफ़
खड़ा खड़ा दुखने लगा पैर ।