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मेरा काम / निशान्त
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निम्न मध्यम वर्ग और
निम्न वर्ग के घरों से आए
बिगाड़ की ओर जा रहे
किशोर बेटों को
ठीक राह पर लाने का
काम था मेरा
आग्रह तो इतना जबदस्त था कि
मैं उन्हें बना दूं कुन्दन
कोशिश भी होती थी
प्रोत्साहित और
चमकृत भी होते थे कभी कभी वे
लेकिन आखिर में
बने रहते थे वही के वही
और चाहते थे कि मैं ही
छोड़ दूँ जिद्द अपनी
मैं सफल होता भी कैसे
दुनिया जिसमें वे
घूमते-फिरते थे
सजा हुआ था
भटकाव का
आकर्षक बाजार
और मेरे पास
ताजा था कम
बासी ज्यादा।