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आवारा अशआर / मधुप मोहता

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मेरी तनहाई हो, और मेरा तसव्वुर हो,
वक़्त के पांव जहां हों, वहीं ठहर जाएं।
खो गए जाने कहां तेरे पावों के निशां,
हम खड़े सोचा किए जाएं तो किधर जाएं।

जाने तू कब मेरे पास से गुज़री थी,
तेरी महक फ़िज़ाओं में अभी बाक़ी है।
मेरी तन्हाई के सन्नाटों के गिर्द कहीं,
तेरी चहक हवाओं में अभी बाक़ी है।

कैसे न हो मुझे ग़म उम्र गंवाने का,
जिसकी तलाश थी वो लम्हा नहीं मिला।
फ़ुरसत मिली कभी, जो ग़मे-रोज़गार से,
तनहाई मिली तो वो लम्हा नहीं मिला।