भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

और तुम / मधुप मोहता

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:56, 22 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |संग्रह=समय, सपना और तुम ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात,
एक अथाह अंधियारा,
और किरणों में जीवंत,
सुबह की संभावना की
बात।

शांति
तुम्हारे चेहरे पर खिंची, सतर्क
तुम्हारी आंखों में गरजती,
एक मौन क्रांति।

क्षण
स्वछंद प्रणय का
आभासित,
आश्वस्त, किंतु
अक्षम।

भ्रम
स्वयं में ओझल,
निश्छल,
या भोलेपन का छल,
और तुम।