भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत / कन्हैया लाल भाटी
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 23 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल भाटी }} [[Category:मूल राजस्था...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आखी रात
बरसतो रैयो आभौ
आखी रात
घुळती रैयी रेत।
आखी रात
पचतो रैयो हाळी
आखी रात
महकती रैयी रेत।
आखी रात
हाळी बीजतो रैयो बीज
आखी रात
उथळ-पुथळ मचावती रैयी रेत।
परभातियै तारै सूं
थोड़ो’क सांत हुयो आभो
परभातियै तारै सूं पैली
सुपनो देखती रैयी रात।
भखावटै-भखावटै
आय उमट्यो कागलां रो टोळो।
बैवती रैयी रेत
रेत अर पाणी रै साथै बैयग्या सगळा।