भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पत्थर सा तन / पद्मजा शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 11 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्मजा शर्मा |संग्रह=सदी के पार / पद...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


वह लड़की आती
फूलों को देखती
छूती सूंघती

मेरी ओर देखती हुई कहती
‘फूल-पत्थर में फर्क
कैसे कर सकता है कोई छूए बिना’

तब पत्थर-सा
हो जाता मेरा तन

पर खिल उठता था मन
फूल-सा।