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पत्थर सा तन / पद्मजा शर्मा
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वह लड़की आती
फूलों को देखती
छूती सूंघती
मेरी ओर देखती हुई कहती
‘फूल-पत्थर में फर्क
कैसे कर सकता है कोई छूए बिना’
तब पत्थर-सा
हो जाता मेरा तन
पर खिल उठता था मन
फूल-सा।