भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस बसन्त में / विमलेश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 12 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश त्रिपाठी |संग्रह=हम बचे रहे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जंगल के सारे वृक्ष काट दिए गये हैं
सभी जानवरों का शिकार कर लिया गया है
पिफर भी इस बसन्त में
मिट्टी में ध्ँसी जड़ों से पचखियाँ झाँक रही हैं
और पास की झुरमुट में एक मादा खरगोश ने
दो जोड़े उजले खरगोश को जन्म दिया है