भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लहरें / सुभाष शर्मा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:30, 19 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> यह ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह जानते हुए भी
कि गिरना है अन्ततः
बार-बार उठती हैं लहरें
देती हैं खुली चुनौती काल को
और नीचे जाकर नापती हैं गहराई
लोग लहरें देखकर भी
क्यों डरते हैं गिरने से ?