भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तॊलिया,इजिचेअर ऒर वेटिंग-रूम / विनोद पाराशर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:36, 21 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद पाराशर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मॆ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मॆं-खूंटी पर टंगा
कोई तॊलिया तो नहीं
कि-
हर कोई आये
ऒर फिर चला जाये
अपने जिस्म को
मेरे जिस्म से रगडकर
छॊड जाये
अपने जिस्म के गंदे किटाणु
मेरे जिस्म पर।
मॆं-घर के कॊने में पडी
कोई ईजी-चेअर तो नहीं
कि-
हर कोई आये
ऒर फिर चला जाये
अपने भारी-भरकम शरीर को
कुछ देर
मुझ पर पटकर
यह भी न देखे
कि मेरी टांगें लडखडा रही हॆ।
मॆं-रेलवे-स्टेशन का
वेटिंग-रुम तो नहीं
कि-हर मुसाफिर
ट्रेन से उतरकर
मुझमें कुछ देर ठहरे
ऒर-फिर
चला जाये
नयी ट्रेन आने पर।