भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गालियाँ / कुमार विकल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:01, 18 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ }} फ़...)
फ़ैक्टरी के मालिक ने
मेरे बेटे को गालियाँ दीं
हरामख़ोर...
सूअर की औलाद
कुत्ते...कमीने
और न जाने क्या-क्या
मेरा बेटा सुनता रहा
रोता रहा...
अब मैं अपने बेटे को गालियाँ दे रहा हूँ
उसने मालिक को
बराबर की गाली क्यों नहॊं दी
क्यों वह
मेरी ढलती उम्र
बीमार माँ
और स्कूल में पढ़ते भाई
के बारे में सोचता रहा
और रोता रहा ।