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उड़ते हुए / वेणु गोपाल

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कभी

अपने नवजात पंखों को देखता हूँ

कभी आकाश को


उड़ते हुए


लेकिन ॠणी मैं फिर भी

ज़मीन का हूँ


जहाँ

तब भी था--जब पंखहीन था

तब भी रहूंगा जब पंख झर जाएँगे ।

(रचनाकाल : 5 जनवरी 1978)