भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक गमला ही सही / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:03, 1 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ठीक है, न सही मेरे पास
कोई वन
एक गमला ही सही
किन्तु फूल उस में जो
खिलता है
वह क्या ऋतु नहीं है ?
और वह ऐश्वर्य वन का नहीं
ऋतु का है।
बल्कि फूल भी लक्षण हैं केवल
ऋतु तो खिलना है
इसलिए यदि टूटे गमला भी
टूट जाय
फिर भी वह ऐश्वर्य मेरा है
क्या नहीं ?
(1976)