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पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे / ठाकुरप्रसाद सिंह

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पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे


साखू की डाल पर उदासे मन

उन्मन का क्या होगा

पात-पात पर अंकित चुम्बन

चुम्बन का क्या होगा

मन-मन पर डाल दिए बन्धन

बन्धन का क्या होगा

पात झरे, गलियों-गलियों बिखरे


कोयलें उदास मगर फिर-फिर वे गाएंगी

नए-नए चिन्हों से राहें भर जाएंगी

खुलने दो कलियों की ठिठुरी ये मुट्ठियाँ

माथे पर नई-नई सुबहें मुस्काएंगी


गगन-नयन फिर-फिर होंगे भरे

पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे