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उदारता / रामनरेश त्रिपाठी

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आतप, वर्षा, शीत सहा, तत्पर की काया।
माली ने उद्योग किया उद्यान सजाया।
सींच सोहने सुमन-समूहों को विकसाया।
सेवन किया सुगंध, सुधा-रसमय फल खाया।

पर मूल्य कहाँ उसने लिया,
कोकिल, बुलबुल, काक से।
वे भी स्वतंत्र सुख से बसे
फल खाए, गाए हँसे।