भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वतंत्रता का दीपक / रामनरेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:34, 9 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी |संग्रह=मानसी / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अत्याचार-पीड़ितों की आशा-लता आँसुओं से
सींचते हैं वीर दुख याद कर रोते हैं।
पथी के पदों की चल सम देह गेह का
विचार झाड़ चित्त से प्रवृत्त तब होते हैं॥
बोते रणखेत में हैं शीश वे सहर्ष जिसे
देश है रखाता जागता वे पड़े सोते हैं।
जग में उजाला करने को निज शोणित से
दीपक स्वतंत्रता का शरमा सँजोते हैं॥