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झर-झर-झर-झर / ठाकुरप्रसाद सिंह

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झर झर झर झर

जैसे यूकिलिप्टस के स्वर

बरसे बादल, कुल एक पहर


ओरी मेरी चुई रात भर

नन्हे छत्रक दल के ऊपर

इन्द्रदेव तेरा गोरा जल

मेरे द्वार विहंसता सुन्दर


तेरे स्वर के बजते मादल

रात रात भर

बादल, रात रात भर

झर झर झर झर

बरसे बादल, कुल एक पहर !