भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शरद् पूर्णिमा १९७५ / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:27, 13 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=मिट्टी बोलती है /...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
शरद की पूर्णिमा
खाली कटोरा खीर का
नदी में नहाने को
चाँदनी आई नहीं इस बार
न माँझी ने छुआई
लहरियों से इस बरस पतवार
किनारा अधलिखा-सा
शेर ग़ालिब, मीर का
कफ़न है, चाँदनी है ?
जब कबूतर ने कहा खुलकर
तमाचा मारने को
बाज़ आया एक ताक़तवर
नदी में घुल गया
ताज़ा लहू नकसीर का