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शरद् पूर्णिमा १९७५ / रमेश रंजक
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शरद की पूर्णिमा
खाली कटोरा खीर का
नदी में नहाने को
चाँदनी आई नहीं इस बार
न माँझी ने छुआई
लहरियों से इस बरस पतवार
किनारा अधलिखा-सा
शेर ग़ालिब, मीर का
कफ़न है, चाँदनी है ?
जब कबूतर ने कहा खुलकर
तमाचा मारने को
बाज़ आया एक ताक़तवर
नदी में घुल गया
ताज़ा लहू नकसीर का