भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कड़ी अनुभूतियों के स्वर / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:17, 14 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=मिट्टी बोलती है /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पानी काटता है जिस तरह पत्थर
काट दूँगा वह अँधेरा
जो कि बरसों से पड़ा है
ज़हर के भीतर
पानी काटता है जिस तरह पत्थर

हर घड़ी, हर दिन, थकन के पार
तेज़ करता हूँ निरन्तर रोशनी की धार

क्या हुआ? यदि चाल है मन्थर
पत्थर काट दूँगा
जो पड़ा है जहन के भीतर

इन कड़ी अनुभूतियों के स्वर
कितने मृदुल हैं—
जानकर हैरान होता हूँ
सत्य तो यह है कि उतनी देर ही
इन्सान होता हूँ

चाहता हूँ मैं
समूचे दिन रहूँ इन्साँ
और घबरा जाएँ मेरी मौत के अक्षर