भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सधे हाथों से / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 14 दिसम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाल्टी जब कुएँ में गिर जाए
                 काँटे से निकालो

रस्सियों में गाँठ बाँधो
थाह लो जल की
कुम्भकर्णी नींद टूटे
साँवले तल की

ढूँढ़ ले जब लौह अपनी जात
               रस्सी को सम्भालो

कारगर हो जाए जब
अहसास, अनुसंधान
उस घड़ी बिल्कुल न देना
बुलबुलों पर कान

सधे हाथों से कुएँ की सान से
                     ऊपर उठा लो

बाल्टी जब कुएँ में गिर जाए
                 काँटे से निकालो